वैदिक पंचांग के अनुसार वर्ष 2025 में मार्गशीर्ष मास का विशेष महत्व है। 15 दिसंबर को मार्गशीर्ष पूर्णिमा के साथ अन्नपूर्णा जयंती भी मनाई जाएगी। यह तिथि धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पावन मानी जाती है। पूर्णिमा के अगले दिन सूर्य देव अपने मासिक गोचर के अनुसार वृश्चिक राशि से निकलकर धनु राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य के इस राशि परिवर्तन को धनु संक्रांति कहा जाता है।
यही परिवर्तन खरमास की शुरुआत का समय भी निर्धारित करता है। अतः 15 दिसंबर 2025 को धनु संक्रांति के साथ ही खरमास का आरंभ हो जाएगा। खरमास के चलते इस पूरे अवधि में शुभ कार्यों, विशेषकर विवाह, नामकरण, गृह प्रवेश और अन्य मांगलिक उत्सवों का आयोजन नहीं किया जाता।
खरमास की समाप्ति: मकर संक्रांति से शुभ कार्यों की पुनः शुरुआत
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव लगभग एक माह तक धनु राशि में भ्रमण करेंगे। इसके पश्चात 14 जनवरी 2026 को सूर्य देव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे, जिसे मकर संक्रांति कहा जाता है। इसी तिथि के साथ खरमास का समापन होता है और शुभ कार्यों का शुभारंभ फिर से संभव हो जाता है।
मकर संक्रांति का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह सूर्य के उत्तरायण होने का संकेत माना जाता है, जो अत्यंत शुभ और मंगलकारी काल कहा गया है।
सनातन धर्म में सूर्य गोचर का महत्व
सनातन परंपरा में सूर्य देव को आत्मा, ऊर्जा और जीवनी शक्ति का प्रतिनिधि माना गया है। इसलिए सूर्य के हर राशि परिवर्तन का विशेष प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है। ज्योतिष के अनुसार, सूर्य देव के शुभ स्थित होने पर करियर, प्रशासनिक कार्य, नेतृत्व क्षमता, सम्मान और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। जिन जातकों पर ग्रहों की बाधाएं होती हैं, सूर्य के सही स्थान पर आते ही उनके जीवन में कई सकारात्मक परिवर्तन देखे जा सकते हैं।
खरमास के दौरान सूर्य ‘अप्रभावित’ स्थिति में माने जाते हैं, इसलिए इस अवधि में मंगल कार्यों से परहेज रखना धार्मिक शास्त्रों में बताया गया है। हालांकि, पूजा-पाठ, दान, व्रत, जप, ध्यान और आध्यात्मिक गतिविधियों को विशेष रूप से फलदायी माना गया है।
संक्रांति का पावन क्षण और धार्मिक आस्था
जब सूर्य देव राशि परिवर्तन करते हैं, तो उस दिन को संक्रांति कहा जाता है। यह दिन केवल खगोलीय दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भी यह अत्यंत शुभ और पुण्यकारी होता है। संक्रांति पर लोग गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करके अपने पापों का क्षय करने का संकल्प लेते हैं।
विशेष रूप से धनु संक्रांति और मकर संक्रांति के दौरान लाखों श्रद्धालु स्नान, ध्यान, सूर्य उपासना, अर्घ्यदान और दान-पुण्य करते हैं। यह माना जाता है कि इस अवधि में किया गया दान कई गुना फल प्रदान करता है।

