मजबूत प्रतिनिधित्व और सुरक्षा की मांग
UP News: दलित और आदिवासी संगठनों ने बुधवार को ‘भारत बंद’ का आह्वान किया है, जिसमें हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए मजबूत प्रतिनिधित्व और सुरक्षा की मांग उठाई गई है। इस बंद को कई राजनीतिक दलों का समर्थन मिल रहा है, जिसमें बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की प्रमुख मायावती भी शामिल हैं।
मायावती का समर्थन और प्रतिक्रिया
बीएसपी प्रमुख मायावती ने सोशल मीडिया के माध्यम से ‘भारत बंद’ का समर्थन करते हुए पहली प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि भाजपा और कांग्रेस जैसी पार्टियों की आरक्षण विरोधी साजिशों और इसे कमजोर करके खत्म करने की मिलीभगत के कारण अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के उपवर्गीकरण और क्रीमीलेयर से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के विरुद्ध दलितों और आदिवासियों में रोष और आक्रोश है।
एनएसीडीएओआर की मांगें
नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ दलित एंड आदिवासी ऑर्गेनाइजेशन्स (एनएसीडीएओआर) ने एक मांगों की सूची जारी की है, जिसमें अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, और अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के लिए न्याय और समानता की मांग शामिल है। संगठन ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दिए गए फैसले का विरोध किया है, जिसे उन्होंने ऐतिहासिक इंदिरा साहनी मामले में दिए गए फैसले को कमजोर करने वाला बताया है। इंदिरा साहनी मामले में नौ न्यायाधीशों की पीठ ने भारत में आरक्षण की रूपरेखा स्थापित की थी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के प्रति विरोध
एनएसीडीएओआर ने सरकार से अपील की है कि वह सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को खारिज करे, क्योंकि यह अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के संवैधानिक अधिकारों के लिए खतरा है। संगठन ने एससी, एसटी, और ओबीसी के लिए आरक्षण पर संसद द्वारा एक नया कानून पारित करने की भी मांग की है, जिसे संविधान की नौवीं सूची में शामिल किया जाए ताकि यह संरक्षित रहे।
एनडीए के सहयोगियों का विरोध और समर्थन
कोर्ट का फैसला आने के बाद एनडीए के कुछ सहयोगी दलों ने भी इसका विरोध किया था। सरकार ने इस मामले पर आश्वासन दिया था, लेकिन इसके बावजूद चिराग पासवान की पार्टी ने बुधवार के ‘भारत बंद’ का समर्थन करने का फैसला किया है। इस बंद के जरिए संगठन और राजनीतिक दल आरक्षण को बनाए रखने और हाशिए पर पड़े समुदायों के अधिकारों की सुरक्षा की मांग कर रहे हैं।
निष्कर्ष
‘भारत बंद’ के जरिए दलित और आदिवासी संगठनों ने अपनी मांगों को प्रमुखता से उठाया है, जिसे कई राजनीतिक दलों का समर्थन मिल रहा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ यह विरोध प्रदर्शन सामाजिक न्याय और आरक्षण की लड़ाई को और तीव्र कर रहा है।