भारतीय उद्योगपति और टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा का 86 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने टाटा समूह को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया और अपनी कुशल नेतृत्व क्षमता के कारण भारत में उद्योग और व्यवसाय के क्षेत्र में अहम योगदान दिया। रतन टाटा को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म भूषण (2000) और पद्म विभूषण (2008) से सम्मानित किया गया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को बॉम्बे (अब मुंबई) में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के कैंपियन स्कूल में हुई, जहां से उन्होंने आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद, उन्होंने अपनी आगे की शिक्षा मुंबई के कैथेड्रल एंड जॉन कॉनन स्कूल और शिमला के बिशप कॉटन स्कूल से पूरी की।
उच्च शिक्षा
स्कूली शिक्षा के बाद रतन टाटा ने अमेरिका के कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में प्रवेश लिया, जहां उन्होंने बैचलर ऑफ आर्किटेक्चर (B.Arch) की डिग्री हासिल की। इसके बाद, 1975 में उन्होंने यूनाइटेड किंगडम के हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एडवांस्ड मैनेजमेंट प्रोग्राम (AMP) पूरा किया। इस शिक्षा ने उन्हें व्यवसायिक दुनिया में एक मजबूत नींव प्रदान की और उनके भविष्य के नेतृत्व को दिशा दी।
टाटा समूह में करियर की शुरुआत
1960 के दशक की शुरुआत में रतन टाटा ने टाटा समूह के साथ अपने करियर की शुरुआत की। शुरुआत में उन्होंने टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर काम किया, जहां उनका काम चूना पत्थर निकालना और ब्लास्ट फर्नेस को संभालना था। इस कठिन भूमिका ने उन्हें जमीनी स्तर से व्यवसाय के संचालन को समझने का मौका दिया।
टाटा संस के अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल
1991 में रतन टाटा को टाटा संस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उनके नेतृत्व में टाटा समूह ने अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की और समूह का राजस्व कई गुना बढ़ गया। रतन टाटा ने टाटा समूह को एक वैश्विक पहचान दिलाई और स्टील, ऑटोमोटिव, आईटी, टेलीकम्युनिकेशन और हॉस्पिटैलिटी जैसे विभिन्न उद्योगों में सफलता प्राप्त की।
वैश्विक अधिग्रहण
रतन टाटा की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियों में से एक रणनीतिक अधिग्रहणों का नेतृत्व करना था। टाटा स्टील ने ब्रिटिश स्टील निर्माता कोरस का अधिग्रहण किया और टाटा मोटर्स ने जगुआर और लैंड रोवर का अधिग्रहण किया। इन अधिग्रहणों ने टाटा समूह को एक वैश्विक कंपनी के रूप में स्थापित किया और कंपनी की साख को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत किया।
सेवानिवृत्ति और विरासत
रतन टाटा ने 28 दिसंबर 2012 को टाटा समूह से सेवानिवृत्ति ली। उनके कार्यकाल के दौरान समूह ने न केवल आर्थिक रूप से मजबूती पाई, बल्कि अपने सामाजिक और नैतिक मूल्यों को भी बनाए रखा। टाटा के योगदान को आज भी एक महत्वपूर्ण व्यवसायिक विरासत के रूप में याद किया जाता है।
रतन टाटा का जीवन, उनकी शिक्षा और व्यवसायिक दृष्टिकोण भारतीय उद्योग जगत के लिए प्रेरणादायक रहा है। उनकी नेतृत्व क्षमता और दूरदर्शिता ने टाटा समूह को एक वैश्विक ब्रांड बनाया और उन्होंने अपने मूल्यों पर कभी समझौता नहीं किया।