बेंगलुरू के एआई इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या के मामले में देशभर में चल रही बहस के बीच सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामलों में केवल उत्पीड़न के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इसके लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उकसाने के स्पष्ट सबूत होने चाहिए। यह टिप्पणी विशेष रूप से बेंगलुरू के 34 वर्षीय इंजीनियर अतुल सुभाष के आत्महत्या मामले के संदर्भ में आई है, जिसमें पत्नी और ससुराल वालों पर उत्पीड़न और आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया था।
आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में स्पष्टता की आवश्यकता
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मामले पर विचार करते हुए कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में केवल उत्पीड़न की स्थिति में दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इसके लिए स्पष्ट सबूतों की जरूरत होती है, जो यह साबित करें कि आरोपी की कार्रवाई ने सीधे तौर पर मृतक को आत्महत्या करने के लिए उकसाया। कोर्ट ने कहा कि अगर केवल उत्पीड़न की स्थिति में आरोपी को दोषी ठहराया जाएगा, तो यह कानून के तहत सही नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और पीबी वराले की पीठ ने यह टिप्पणी गुजरात हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक महिला के पति और ससुराल पक्ष के लोगों को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप से दोषमुक्त करने का आदेश दिया गया था।
बेंगलुरू के आत्महत्या मामले का संदर्भ
बेंगलुरू में 34 वर्षीय इंजीनियर अतुल सुभाष ने आत्महत्या कर ली थी। अतुल ने अपनी पत्नी निकिता सिंघानिया और उसके परिवार के अन्य सदस्यों पर उत्पीड़न का आरोप लगाया था। इसके बाद, उनकी पत्नी, मां, पिता और चाचा के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया। इस मामले में, कोर्ट ने कहा कि आरोपों के लिए सिर्फ उत्पीड़न को आधार बनाना पर्याप्त नहीं है।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आईपीसी की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाने) के तहत आरोपी की उपस्थिति और स्पष्ट उकसाने के इरादे को साबित करना आवश्यक है। केवल उत्पीड़न के आधार पर यह साबित नहीं किया जा सकता कि आरोपी ने आत्महत्या के लिए उकसाया था। इस संदर्भ में, कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि आरोपी द्वारा की गई सक्रिय कार्रवाई ने ही मृतक को आत्महत्या करने के लिए उकसाया।
कोर्ट का फैसला और आरोपों का निराकरण
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यह निर्णय दिया कि आरोपियों के खिलाफ धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाने) को हटा दिया जाए। हालांकि, कोर्ट ने आईपीसी की धारा 498-ए (विवाहिता के साथ क्रूरता) के तहत आरोपों को बरकरार रखा। इससे यह साफ हो गया कि उत्पीड़न के आरोप अलग हैं और आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप अलग।
कोर्ट ने कहा कि आरोपियों द्वारा की गई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कार्रवाई के बिना, केवल उत्पीड़न के आधार पर आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला नहीं बनता। इसके लिए यह साबित करना जरूरी है कि आरोपी की कार्रवाई सीधे तौर पर आत्महत्या का कारण बनी।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और फैसले ने यह स्पष्ट किया कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामलों में कानूनी प्रक्रिया और सबूतों की अहमियत है। केवल उत्पीड़न के आधार पर किसी को दोषी ठहराया नहीं जा सकता, बल्कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उकसाने के स्पष्ट प्रमाण होने चाहिए। यह फैसला उन मामलों में दिशा-निर्देश के रूप में कार्य करेगा जहां आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया जाता है।