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स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पावेल ने लिया सनातन धर्म की दीक्षा, रुद्राक्ष की माला पहनने का संकल्प


Lauren Powell: स्टीव जॉब्स की पत्नी, लॉरेन पावेल, हाल ही में सनातन धर्म की दीक्षा लेकर एक नई आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत की है। हालांकि, स्वास्थ्य समस्याओं के कारण वह संगम में अमृत स्नान करने के लिए नहीं जा पाई, लेकिन इस अवसर पर उन्हें संत स्वामी कैलाशानंद जी ने अमृत स्नान का अनुभव कराया। स्वामी कैलाशानंद जी ने संगम का जल उनके ऊपर छिड़कते हुए इस धार्मिक क्रिया का महत्व समझाया और दीक्षा का कार्यक्रम आयोजित किया।

स्वामी कैलाशानंद के आशीर्वाद से दीक्षा प्राप्त की
स्वामी कैलाशानंद जी ने लॉरेन पावेल को दीक्षा दी और उन्हें सनातन धर्म की जड़ी-बूटी से परिचित कराया। इस दीक्षा के दौरान स्वामी जी ने उन्हें यह समझाया कि जीवन में सच्चे सुख और शांति की प्राप्ति के लिए धार्मिक कार्यों और साधनाओं का पालन करना आवश्यक होता है। उन्होंने उन्हें अच्युत गोत्र का नाम भी दिया, जो एक विशेष धार्मिक पहचान है। यह गोत्र मिलने के बाद, लॉरेन ने अपने जीवन में एक नया अध्याय शुरू किया, जिसमें वह पूरी तरह से सनातन संस्कृति और परंपराओं का पालन करने की दिशा में अग्रसर हो गईं।

रुद्राक्ष की माला पहनने का संकल्प
स्वामी कैलाशानंद ने लॉरेन पावेल को रुद्राक्ष की माला पहनने का संकल्प दिलाया। रुद्राक्ष की माला हिन्दू धर्म में एक विशेष स्थान रखती है और इसे मानसिक शांति, आत्मसंतुलन और सकारात्मक ऊर्जा के लिए पहना जाता है। इस माला के माध्यम से व्यक्ति भगवान शिव की आराधना करता है और अपनी आध्यात्मिक यात्रा को प्रगति की दिशा में आगे बढ़ाता है। लॉरेन ने इस माला को हमेशा अपने गले में पहनने का संकल्प लिया, जो उनके सनातन धर्म के प्रति समर्पण का प्रतीक होगा।

आध्यात्मिक जागरूकता की ओर कदम
लॉरेन पावेल की यह यात्रा न केवल उनके जीवन को एक नई दिशा देने वाली है, बल्कि यह एक संकेत भी है कि बाहरी दुनिया में रहने वाले व्यक्ति भी भारतीय संस्कृति और धार्मिकता की ओर आकर्षित हो सकते हैं। उन्होंने अपने जीवन के इस नए अध्याय में धर्म, योग और साधना को अपनाकर आत्मशांति की ओर कदम बढ़ाया है।

इस पूरी घटना से यह सिद्ध होता है कि आधुनिकता और पारंपरिक धर्म के बीच संतुलन बनाए रखते हुए व्यक्ति अपने जीवन में आंतरिक शांति और संतुलन ला सकता है। लॉरेन पावेल का यह कदम न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन में बदलाव लाएगा, बल्कि यह समाज में धार्मिकता और आध्यात्मिकता के प्रति एक नई जागरूकता भी उत्पन्न करेगा।

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