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बाबा को मिली क्लीन चिट: 121 बेगुनाहों की मौत का इंसाफ अब भी अधूरा

भोले बाबा को मिला पुलिस का संरक्षण

121 मासूम बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों की दुखद मौत के बावजूद, पुलिस ने नारायण हरि साकार उर्फ भोले बाबा को आरोपी नहीं बनाया। पुलिस की जांच में उन्हें पूरी तरह से निर्दोष करार दिया गया, जबकि मुख्य सेवादार और अन्य लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी गई है। इससे स्पष्ट होता है कि पुलिस की शुरुआत से ही बाबा के प्रति झुकाव था। पुलिस ने न केवल उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश नहीं की, बल्कि उनसे पूछताछ करने का भी साहस नहीं जुटा पाई।

इंसाफ की आड़ में खेल: पुलिस और SIT का रवैया

121 बेगुनाहों की मौत के मामले में पुलिस और SIT की भूमिका अब सामने आ चुकी है। यह चौंकाने वाली बात है कि इतनी बड़ी घटना के बावजूद किसी भी अदालत ने पुलिस की “कलंकित जांच” पर ध्यान नहीं दिया। बाबा अब भी आज़ाद हैं और उन्होंने फिर से अपने प्रवचन और सभाएं शुरू कर दी हैं। पुलिस ने छोटे अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ मामूली कार्रवाई कर इस मामले को दबाने की कोशिश की। वहीं, दूसरी ओर छोटी घटनाओं में लोगों का जीवन तबाह कर देने वाली पुलिस बाबा के सामने नतमस्तक दिख रही है।

धार्मिक आयोजनों में लापरवाही का सिलसिला: सवाल अनसुलझे

सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि ऐसे बाबाओं और उनके आयोजनों में आखिर इतनी बदइंतजामी क्यों होती है? क्या हाथरस में हुए हादसे के असल दोषी बाबा और उन्हें छूट देने वाला जिला प्रशासन नहीं था? यह सवाल भी अहम है कि आखिर पुलिस और प्रशासन ने बाबा के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की।

ध्यान देने वाली बात है कि ज्यादातर भगदड़ की घटनाएं धार्मिक आयोजनों में ही क्यों होती हैं? धार्मिक आयोजनों में बढ़ती भीड़ और अव्यवस्था पर रोक लगाने के लिए अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। भारत जैसे आस्था प्रधान देश में इस खतरनाक ट्रेंड पर कोई नियंत्रण नहीं है।

आगे भी हो सकती हैं ऐसी घटनाएं

तीन महीने पहले हुई इतनी बड़ी घटना के बाद भी, इन बाबाओं और उनके आयोजनों पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई। जैसे-जैसे समय बीतता गया, यह मामला भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। अगर अभी भी इन बाबाओं पर कोई कार्रवाई नहीं की गई, तो भविष्य में ऐसी घटनाओं का दोहराव निश्चित है।

कुल मिलाकर, यह घटना केवल एक लापरवाही या बदइंतजामी का परिणाम नहीं है, बल्कि धार्मिक आयोजनों और पाखंडियों के प्रति प्रशासन और पुलिस की उदासीनता का प्रमाण भी है।

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