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बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद द्वारा शस्त्र पूजन कार्यक्रम का भव्य आयोजन – हिंदू संस्कृति और शौर्य का संदेश

Lucknow News: लखनऊ, दक्षिण जिले में बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद द्वारा आयोजित शस्त्र पूजन कार्यक्रम भव्यता और गरिमा के साथ सम्पन्न हुआ। यह कार्यक्रम शुभम सिंह गौर (अधिवक्ता), जिला संयोजक – बजरंग दल लखनऊ दक्षिण के नेतृत्व में गुप्ता बुक डिपो, उतरेठिया में आयोजित किया गया। कार्यक्रम में हिंदू संस्कृति, शौर्य और आत्मरक्षा के महत्व को रेखांकित किया गया।

देवेंद्र जी (प्रांत मंत्री – विश्व हिंदू परिषद) का बौद्धिक मार्गदर्शन

कार्यक्रम की मुख्य विशेषता देवेंद्र जी, प्रांत मंत्री – विश्व हिंदू परिषद, का बौद्धिक सत्र रहा। उन्होंने उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि समस्त हिंदू देवी-देवताओं के हाथों में शस्त्र रहे हैं, जो इस बात का प्रतीक है कि धर्म की रक्षा के लिए शक्ति और साहस की आवश्यकता होती है। उन्होंने युवाओं को प्रेरित करते हुए कहा कि हमें अपने ईष्टों से शिक्षा लेनी चाहिए और समय आने पर धर्म, समाज और राष्ट्र की रक्षा हेतु सजग रहना चाहिए।

उन्होंने यह भी बताया कि शस्त्र पूजन केवल परंपरा नहीं, बल्कि आत्मरक्षा और आत्मसम्मान का प्रतीक है। जब हम अपने इतिहास और परंपराओं की ओर देखते हैं, तो पाते हैं कि हमारे पूर्वजों ने अन्याय और अधर्म के विरुद्ध शस्त्र उठाए और धर्म की रक्षा की।

उपस्थित रहे कई प्रमुख कार्यकर्ता और पदाधिकारी

इस गरिमामय कार्यक्रम में विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कई प्रमुख कार्यकर्ता एवं पदाधिकारी उपस्थित रहे। जिनमें प्रमुख रूप से:
धीरज सोनकर जी – जिला मंत्री, विश्व हिंदू परिषद
नीरज शुक्ला जी – सह मंत्री
संजीव जी – संस्कार प्रमुख
अरविंद गुप्ता जी – सह संस्कार प्रमुख
कमलेश जी, राज कुमार जी, शिवजीत जी, बबीता जी, रेणु जी, प्रवीण जी, धर्मेंद्र जी आदि सक्रिय कार्यकर्ता मौजूद रहे।

सभी ने एकमत होकर शस्त्र पूजन को धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए आवश्यक बताया और युवाओं से आह्वान किया कि वे अपनी शारीरिक, मानसिक और सांस्कृतिक शक्ति को बढ़ाएं।

कार्यक्रम का उद्देश्य

इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य हिंदू समाज को आत्मरक्षा के लिए सजग करना, युवाओं में धर्म, संस्कृति और राष्ट्र के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना तथा शक्ति और भक्ति के संतुलन को दर्शाना था।

शस्त्र पूजन कार्यक्रम न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान था, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक संदेश भी था कि जब भी धर्म पर संकट आए, तो हमें अपने शौर्य, साहस और संगठन के साथ खड़े होना चाहिए।

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