मायावती का आरोप: सरकार दे रही है बाबा को संरक्षण
हाथरस सत्संग भगदड़ कांड को लेकर यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा प्रमुख मायावती ने योगी सरकार पर कड़ा हमला किया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए मायावती ने चार्जशीट में सूरजपाल सिंह उर्फ भोले बाबा का नाम न होने पर सरकार की आलोचना की। अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा, “2 जुलाई को हुए हाथरस सत्संग भगदड़ कांड में 121 लोगों, जिनमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे शामिल थे, की मौत पर दाखिल चार्जशीट से सूरजपाल सिंह उर्फ भोले बाबा का नाम गायब होना जनविरोधी राजनीति का प्रमाण है। इससे साबित होता है कि ऐसे व्यक्तियों को राज्य सरकार का संरक्षण प्राप्त है, जो कि पूरी तरह अनुचित है।”
11 सेवादारों को बनाया आरोपी, बाबा पर चुप्पी क्यों?
मायावती ने आगे लिखा, “मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सिकंदराराऊ की इस दर्दनाक घटना पर 2,300 पन्नों की चार्जशीट में 11 सेवादारों को आरोपी बनाया गया है, लेकिन बाबा सूरजपाल के बारे में सरकार की लगातार चुप्पी क्या उचित है? सरकार के इस रवैये से क्या ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है? आमजन इससे गहरे चिंतित हैं।”
चार्जशीट से गायब बाबा का नाम, आमजन में नाराज़गी
मिली जानकारी के मुताबिक, मंगलवार को यूपी पुलिस ने सत्संग भगदड़ मामले के आरोपियों को अदालत के समक्ष पेश किया और चार्जशीट भी दाखिल की। चार्जशीट में 11 लोगों के नाम शामिल किए गए हैं, लेकिन सूरजपाल उर्फ भोले बाबा का नाम नदारद है। उल्लेखनीय है कि इस मामले में पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में भी बाबा का नाम नहीं था, और अब चार्जशीट में भी उनका नाम शामिल नहीं किया गया है।
सत्संग आयोजन में मची भगदड़, 121 लोगों की मौत
यह घटना इस साल जुलाई में हाथरस के फुलरई गांव में आयोजित सत्संग के दौरान हुई थी। सत्संग का आयोजन एक खेत में किया गया था, जिसके लिए आयोजकों ने प्रशासन से 80,000 श्रद्धालुओं के आने की अनुमति ली थी। हालांकि, वहां 2.5 लाख श्रद्धालु पहुंच गए थे। सत्संग के बाद, जब सूरजपाल वहां से निकले, तो बड़ी संख्या में लोग उनके पीछे चलने लगे, जिससे भगदड़ मच गई। इस हादसे में 121 निर्दोष लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
सरकार के रवैये पर सवाल
इस हादसे के बाद बाबा सूरजपाल और उनके आयोजनों को लेकर सरकार की चुप्पी पर आमजन में काफी नाराजगी है। मायावती ने अपने ट्वीट्स के माध्यम से सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर ऐसे लोगों को यूं ही संरक्षण मिलता रहेगा, तो भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोक पाना मुश्किल होगा। उनका मानना है कि इस मामले में सरकार का रवैया पूरी तरह से जनता विरोधी है, और इससे आम लोगों की सुरक्षा पर सवाल खड़ा होता है।