IT scandal India: भारत लंबे समय से वैश्विक आईटी सेवा प्रदाता के रूप में पहचाना जाता रहा है। मगर हाल ही में सामने आए भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और अनैतिक व्यावसायिक गतिविधियों के आरोपों ने भारत की यह छवि संकट में डाल दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय रहते इस पर प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई, तो यह भारत की तकनीकी विश्वसनीयता और अमेरिका समेत अन्य देशों के साथ साझेदारी को नुकसान पहुंचा सकता है।
टीसीएस में घोटाले से हुई शुरुआत
2023 में भारत की सबसे बड़ी आईटी कंपनी टीसीएस (TCS) में घूस और वेंडर पक्षपात का मामला सामने आया। टीसीएस की आंतरिक जांच के अनुसार, हैदराबाद स्थित फॉरे सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड और बेंगलुरु की टैलटेक टेक्नोलॉजीज ने कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों को रिश्वत देकर अंदरूनी सूचनाएं हासिल कीं और कॉन्ट्रैक्ट स्टाफिंग के ठेके अनुचित रूप से प्राप्त किए।इन कंपनियों को अन्य 1000 से अधिक सब-वेंडर्स से पहले ज़रूरतों की जानकारी मिल गई, जिससे वे निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को दरकिनार कर ठेके जीतने में सफल रहीं। टीसीएस ने तत्परता दिखाते हुए इन कंपनियों और संबंधित अधिकारियों को ब्लैकलिस्ट किया, मगर नुकसान पहले ही हो चुका था।
घोटालों की जड़ें गहरी
टीसीएस द्वारा ब्लैकलिस्ट किए जाने के बाद भी फॉरे सॉफ्टवेयर भारत और विदेशों में गुप्त रूप से संचालन कर रही है। बेंगलुरु के एक इंडस्ट्री ऑडिटर के अनुसार, यह कंपनी आज भी भर्ती चैनलों की कमजोरियों का फायदा उठाकर फॉर्च्यून 500 कंपनियों को गुमराह कर रही है।एक अन्य साझेदार कंपनी ईएस सर्च कंसल्टेंट्स, जो टेक्सास में मधु कोनेनी और मृदुला मुनगला द्वारा चलाई जाती है, पर भी गंभीर आरोप हैं। आरोप है कि जब इनके कर्मचारी किसी क्लाइंट कंपनी में प्रवेश करते हैं, तो वे वहां की हायरिंग प्रक्रिया को प्रभावित कर योग्य उम्मीदवारों को रिजेक्ट करते हैं और अपने पसंदीदा उम्मीदवारों को ऊंचे रेट पर रखते हैं – जो अधिकतर H1B वीजा धारक होते हैं।
‘तेलुगु माफिया’ मॉडल और पक्षपात का आरोप
पूर्व कर्मचारी और आलोचक इस नेटवर्क को “तेलुगु माफिया” कहकर संबोधित करते हैं – जो अपने ही समुदाय के लोगों को आगे बढ़ाते हैं और योग्य लेकिन बाहरी उम्मीदवारों को पीछे कर देते हैं। सार्वजनिक H1B डेटा के अनुसार, ईएस सर्च ने कई बार कंपनियों जैसे WW Grainger और 7-Eleven को “सेकेंडरी एंटिटी” बताया है, जबकि मधु कोनेनी स्वयं Grainger में पूर्णकालिक कर्मचारी हैं। यह स्थिति हितों के टकराव (conflict of interest) और पारदर्शिता के अभाव की ओर इशारा करती है।
बड़ी साझेदारियों पर मंडराया संकट
यह विवाद ऐसे समय पर सामने आया है जब भारत और अमेरिका डिजिटल क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। यदि ऐसे मामलों पर अंकुश नहीं लगाया गया, तो यह भारत की वैश्विक तकनीकी नेतृत्व की स्थिति को कमज़ोर कर सकता है।
उद्योग जगत की मांग
तकनीकी विशेषज्ञ और नीति विश्लेषक इन अनैतिक गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए कुछ प्रमुख उपायों की मांग कर रहे हैं:
सब-वेंडर कंपनियों की स्वतंत्र ऑडिटिंग
भर्ती और सोर्सिंग प्रक्रिया में पूर्ण पारदर्शिता
दोषी कंपनियों को ब्लैकलिस्ट करना
अंतरराष्ट्रीय नियामकों की सख्त निगरानी