बिहार में एमबीए चायवाला की चर्चा लंबे समय से होती रही है और इसके चलते कई जिलों में चाय के स्टाल भी खोले गए। लेकिन अब ट्रेडिंग में एक नया बदलाव देखने को मिल रहा है। आईटीआई की पढ़ाई करने के बाद युवा मुर्गा पालन की ओर बढ़ रहे हैं। बेगूसराय जिले के गढ़हारा रेल यार्ड क्षेत्र के रहने वाले गोविंद कुमार ने बेगूसराय के एक निजी आईटीआई कॉलेज से आईटीआई की पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई के बाद रोजगार की तलाश में वे सिल्लीगुड़ी गए, लेकिन वहां उन्हें रोजगार नहीं मिला। इसके बाद वे अपने गांव लौट आए और छोटे स्तर पर मुर्गा पालन की शुरुआत की। आज, गोविंद कुमार मुर्गा पालन से सालाना लाखों रुपये की कमाई कर रहे हैं।
मुर्गा पालन से कमाई में सफलता
बेगूसराय के आईटीआई मुर्गा वाला के नाम से मशहूर गोविंद कुमार ने लोकल 18 को बताया कि वे पहले क्रिकेट प्रेमी थे और इसके लिए कोलकाता भी गए थे। यहां रहकर क्रिकेट की तैयारी की और जिला स्तर तक खेला, लेकिन खेल की दुनिया से नाता तोड़ने के बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए बेगूसराय के एक निजी आईटीआई कॉलेज में दाखिला लिया। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने सिलीगुड़ी जाकर नौकरी की तलाश की, लेकिन वहां नौकरी नहीं मिली। इसके बजाय, उन्हें मुर्गा पालन का विचार आया। उन्होंने 2020 में गांव लौटकर 20 कड़कनाथ और 20 सोनाली मुर्गों की प्रजाति को 2,000 रुपये में खरीदकर अपने घर की छत पर मुर्गा पालन की शुरुआत की।
नौकरी की तलाश में आए बदलाव
वर्तमान में, गोविंद कुमार और उनकी मां दिन भर मुर्गा फार्म में समय बिताते हैं। वे मकई के मुर्गा दाने और हरा चारा का विशेष उपयोग करते हैं, जिससे मुर्गों की इम्युनिटी मजबूत होती है और उनकी कीमत भी बढ़ जाती है। वे बताते हैं कि एक लोट में 3,000 से 5,000 सोनाली और कड़कनाथ मुर्गों का पालन कर बाजार के लिए तैयार किया जाता है। इस दौरान लागत खर्च डेढ़ लाख रुपये तक आता है, जबकि बाजार मूल्य 4 लाख रुपये तक मिल जाता है। जब कभी सहायता की जरूरत पड़ती है, तो उनकी मां जीविका से लेकर बेटे की समय-समय पर मदद करती हैं।