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Mahakumbh 2025:महाकुंभ 2025 का अंतिम स्नान…26 या 27 फरवरी? जानिए इसका महत्व और शुभ मुहूर्त

Maha Kumbh 2025 Maha Shivratri Snan:महाकुंभ मेला एक ऐसा धार्मिक पर्व है, जो भारत के प्रयागराज में हर 12 साल में आयोजित होता है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम स्थल पर आकर अमृत स्नान करते हैं। इसे पुण्यदायिनी डुबकी भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन स्नान करने से न केवल पाप धोने का विश्वास होता है, बल्कि यह भगवान की कृपा प्राप्त करने का भी अवसर होता है। इस स्नान के दौरान विशेष रूप से आस्था और धार्मिकता का महत्व होता है, और श्रद्धालु इस मौके को अपने जीवन के सबसे पवित्र अनुभवों में से मानते हैं।

महाकुंभ के अंतिम स्नान का महत्व

महाकुंभ के अंतिम स्नान का दिन बेहद खास होता है। इसे ‘अमृत स्नान’ कहा जाता है, जो इस पर्व का सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। इस दिन को लेकर श्रद्धालुओं में विशेष उत्साह होता है, क्योंकि यह माना जाता है कि इस दिन संगम में डुबकी लगाने से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाकुंभ का अंतिम स्नान धर्म के प्रति श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक माना जाता है, और यह दिन श्रद्धालुओं के लिए अत्यधिक पुण्यकारी होता है।

अंतिम स्नान कब होगा?

महाकुंभ मेला 2025 में अंतिम स्नान का मुहूर्त बहुत ही महत्वपूर्ण है। हिंदू पंचांग के अनुसार, चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 26 फरवरी को सुबह 11 बजकर 8 मिनट पर होगी और समापन 27 फरवरी को सुबह 8 बजकर 54 मिनट पर होगा। इस दिन महाशिवरात्रि का पर्व भी मनाया जाएगा, जो एक विशेष धार्मिक महत्व रखता है। इसके साथ ही, महाकुंभ मेला 2025 का समापन भी इसी दिन होगा, और श्रद्धालु अंतिम अमृत स्नान करने के लिए संगम स्थल पर पहुंचेंगे।

महाकुंभ में अंतिम स्नान का विशेष महत्व

महाकुंभ के इस अंतिम स्नान का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह दिन पवित्र और धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक अहम होता है। इस दिन त्रिवेणी संगम पर स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और मनुष्य को आत्मिक शांति और मुक्ति मिलती है। यही कारण है कि लाखों लोग इस दिन को अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन मानते हुए इस अवसर का लाभ उठाते हैं।

महाकुंभ का आयोजन और श्रद्धालुओं की भीड़

महाकुंभ मेला दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है, जिसमें हर वर्ष करोड़ों श्रद्धालु भाग लेते हैं। इस मेले के दौरान न केवल भारत से, बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं। श्रद्धालु यहां आकर अपने पापों को धोने और भगवान के दर्शन करने के साथ ही, एक नई ऊर्जा और आस्था के साथ वापस लौटते हैं।

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