परिवार की पीड़ा और शहीद मलखान सिंह की यादें
7 फरवरी 1968 का दिन, जब 23 वर्षीय मलखान सिंह की विमान हादसे में मौत की खबर उनके परिवार को मिली, आज भी परिवार की यादों में ताजा है। उस वक्त उनके छोटे भाई इसमपाल सिंह की उम्र करीब 12 साल थी। परिवार के सदस्य एक कोने में जाकर चुपचाप रोते थे क्योंकि किसी ने मलखान का अंतिम समय में चेहरा भी नहीं देखा था। 56 साल बाद जब सेना ने मलखान सिंह का पार्थिव शरीर मिलने की जानकारी दी, तो पुराना दर्द फिर से हरा हो गया। इसमपाल की आंखों में आंसू छलक आए, और वे सोचने लगे कि अब इस दर्द पर कैसे प्रतिक्रिया दें—क्या दुख जताएं या इस बात का सब्र करें कि अब कम से कम उनके भाई की अंत्येष्टि तो हो सकेगी।
1968 के विमान हादसे का दर्द
मलखान सिंह 1968 में हिमाचल प्रदेश के सियाचिन क्षेत्र में सेना के विमान हादसे में शहीद हुए थे। उस वक्त उनके शव का कोई अता-पता नहीं चला था। 56 साल बाद जब उनके शव मिलने की खबर आई, तो परिवार के लोग आश्चर्यचकित रह गए। उनकी पत्नी और इकलौते बेटे की पहले ही मौत हो चुकी थी। परिवार के पास अब सिर्फ बहू, दो पोते और एक पोती बची है।
मलखान सिंह का पोता गौतम कुमार कहता है, “हमें कल यह सूचना मिली कि दादाजी का शव मिल चुका है। गांव में खुशी और दुख दोनों का माहौल है।” इस खबर से परिवार का गम फिर से ताजा हो गया, लेकिन उनके पोते गौतम को खुशी है कि इतने सालों बाद उन्हें अपने दादा के पार्थिव शरीर को विदाई देने का मौका मिला है।
आर्थिक स्थिति और मदद की उम्मीद
मलखान सिंह के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। उनके दोनों पोते सहारनपुर में ऑटो चलाकर जैसे-तैसे अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं। गौतम ने उम्मीद जताई थी कि वायु सेना की तरफ से कोई आर्थिक मदद मिलेगी, लेकिन अब तक कोई मदद नहीं मिली। फिर भी परिवार के दिल में यह संतोष है कि इतने वर्षों बाद उन्हें अपने दादा का शव मिला।
गांव में देशभक्ति का माहौल
मलखान सिंह का शव लद्दाख से भारतीय वायुसेना के विमान द्वारा सरसावा एयरफोर्स स्टेशन लाया गया। वहां जवानों ने उन्हें सलामी दी, जिसके बाद शव को पूरे सम्मान के साथ उनके पैतृक गांव फतेहपुर लाया गया। गांव में शहीद मलखान सिंह के पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन के लिए बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए।
शहीद की अंतिम विदाई और परिवार का संकल्प
शहीद मलखान सिंह का अंतिम संस्कार उनके परिवार द्वारा किया जाएगा। उनके छोटे भाई इसमपाल ने कहा कि यह भगवान का आशीर्वाद है कि पितृ पक्ष में उनका शव मिला, जिससे वे धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार अंतिम संस्कार कर सकेंगे। परिवार के लोग, जिन्होंने मलखान सिंह की कहानियां सुनी थीं, अब उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि देने के लिए तैयार हैं।
56 साल बाद, शहीद मलखान सिंह का पार्थिव शरीर मिलना उनके परिवार और गांव के लिए एक बड़ी घटना है। यह न केवल परिवार के लिए संतोष का विषय है, बल्कि पूरे गांव में देशभक्ति का माहौल भी पैदा कर रहा है।