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राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे: पीएम मोदी बोले – यह केवल गीत नहीं, एक मंत्र, ऊर्जा और संकल्प है

National song ‘Vande Mataram: राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् की रचना आज से 150 वर्ष पहले हुई थी। इस महत्वपूर्ण अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस गीत को एक मंत्र, ऊर्जा और संकल्प के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि यह केवल एक गीत नहीं, बल्कि हमारी आस्था, हमारी संस्कृति और हमारी देशभक्ति का प्रतीक है।

स्मारक उत्सव और संयुक्त गायन

150वाँ वार्षिक उत्सव समारोह बड़े उल्लास के साथ मनाया गया। इस मौके पर इवेंट का मंच इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम था, जहाँ उपस्थित नागरिकों, छात्र-छात्राओं तथा गणमान्य व्यक्तियों ने ‘वंदे मातरम्’ के पूर्ण संस्करण का सामूहिक गायन किया। प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं इस गायन में भाग लिया, जिससे कार्यक्रम को विशेष गरिमा मिली। इस सामूहिक गायन का उद्देश्य केवल गीत का आह्वान करना नहीं था बल्कि उसमें समाहित संकल्पों को पुनर्जीवित करना भी था।

स्मारक डाक टिकट व सिक्का विमोचन

समारोह के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने एक विशेष स्मारक डाक टिकट और एक अनमोल स्मारक सिक्का भी जारी किया। यह विमोचन इस वर्षगांठ को यादगार बनाने और आने वाली पीढ़ियों के लिए इस गीत के महत्व को संरक्षित करने का प्रतीक है। डाक टिकट और सिक्का, दोनों ही राष्ट्रीय गौरव की अभिव्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किए गए। इसका अर्थ यह है कि ‘वंदे मातरम्’ का संदेश केवल मौखिक नहीं बल्कि भौतिक स्वरूप में भी समाहित किया गया है, जिससे यह अमिट बन सके।

‘वंदे मातरम्’—मंत्र, ऊर्जा, संकल्प

प्रधानमंत्री ने समारोह के दौरान ‘वंदे मातरम्’ को तीन प्रमुख आयामों में परिभाषित किया: मंत्र, ऊर्जा और संकल्प।

मंत्र: यह वह उद्घोष है जो हमें राष्ट्रीय एकता, समर्पण और आत्मविश्वास की ओर ले चलता है।

ऊर्जा: यह गीत हमें प्रेरित करता है, हमें सक्रिय बनाता है और हमें आगे बढ़ने की ताकत देता है।

संकल्प: इसके माध्यम से हम यह प्रतिज्ञा करते हैं कि हम देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझेंगे, निभाएंगे और अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाएंगे।

इस तरह, ‘वंदे मातरम्’ केवल इतिहास-पृष्ठों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वर्तमान में जीवंत है—हर नागरिक के हृदय में, हर युवा के विचार में और हर जनसमूह के गान में।

आने-वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा

150 वर्ष पूरे होने का यह पड़ाव हमें याद कराता है कि यह गीत केवल एक गीत नहीं था—यह एक आंदोलन के स्वर में शुरू हुआ था। समय के साथ इसने राष्ट्रीय चेतना को बढ़ावा दिया और हमें यह सिखाया कि अपने देश के प्रति प्रेम और समर्पण मात्र भावनाएँ नहीं, बल्कि कर्म की प्रतिबद्धता भी है। आज यह गीत युवा-युवााओं को प्रेरित करता है कि वे न केवल संगीत में भाग लें, बल्कि देश-सेवा, संस्कृति-प्रति सम्मान और सामाजिक उत्तरदायित्व को भी अपनाएं।

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