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यूपी के चार मेडिकल कॉलेजों में NEET-2025 के दाखिले रद्द…हाईकोर्ट ने आरक्षण में अनियमितता पर उठाए सवाल

NEET 2025:इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश के चार सरकारी मेडिकल कॉलेजों में NEET-2025 के अंतर्गत हुए दाखिलों को रद्द कर दिया है। यह निर्णय कोर्ट ने अंबेडकरनगर, कन्नौज, जालौन और सहारनपुर स्थित मेडिकल कॉलेजों में आरक्षण नीति में गंभीर अनियमितताओं को देखते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि इन कॉलेजों में आरक्षित वर्ग के लिए 79 प्रतिशत से अधिक सीटें सुरक्षित करना संविधान और आरक्षण अधिनियम 2006 के विरुद्ध है।

राज्य सरकार के विशेष आरक्षण शासनादेशों को कोर्ट ने किया खारिज

न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि राज्य सरकार द्वारा जारी विशेष आरक्षण संबंधी शासनादेश, जो विभिन्न वर्षों में (2010 से 2015 के बीच) लागू किए गए, वे आरक्षण अधिनियम की मूल भावना के खिलाफ हैं। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि इन सीटों को नए सिरे से आरक्षण अधिनियम के अनुसार भरा जाए और सभी संबंधित प्रक्रिया कानूनी दायरे में रहकर दोबारा शुरू की जाए।

साबरा अहमद की याचिका बनी फैसले की आधारशिला

यह फैसला न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने पारित किया। यह मामला नीट-2025 की परीक्षार्थी साबरा अहमद द्वारा दाखिल याचिका पर आधारित था। याची की ओर से अधिवक्ता मोतीलाल यादव ने दलील दी कि साबरा को नीट में 523 अंक मिले हैं और उसकी ऑल इंडिया रैंक 29,061 है। इसके बावजूद उसे सीट नहीं मिली, क्योंकि महज 7 सीटें ही अनारक्षित श्रेणी के लिए छोड़ी गई थीं।

50% से अधिक आरक्षण पर कोर्ट की आपत्ति

याचिका में यह भी कहा गया कि 20 जनवरी 2010, 21 फरवरी 2011, 13 जुलाई 2011, 19 जुलाई 2012, 17 जुलाई 2013 और 13 जून 2015 को जारी शासनादेशों के जरिए आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 79% से अधिक कर दी गई, जो कि सुप्रीम कोर्ट के स्थापित सिद्धांत के विरुद्ध है। सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% से ज्यादा नहीं होनी चाहिए, सिवाय कुछ विशेष परिस्थितियों के।

राज्य सरकार की दलील खारिज

राज्य सरकार और चिकित्सा शिक्षा विभाग की ओर से इसका विरोध करते हुए दलील दी गई कि इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट ने 50% सीमा को अंतिम नहीं बताया है और विशेष परिस्थितियों में इसे बढ़ाया जा सकता है। लेकिन न्यायालय ने यह तर्क मानने से इंकार कर दिया और कहा कि सीमा को बढ़ाने के लिए भी नियमबद्ध और संवैधानिक प्रक्रिया अपनाना जरूरी है, जिसे इस मामले में नजरअंदाज किया गया।

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