Nithari murder case: उत्तर प्रदेश के नोएडा में 2005-2006 के बीच घटित निठारी हत्याकांड एक ऐसा मामला था जिसने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था। बच्चों के रहस्यमय ढंग से गायब होने, उनकी निर्मम हत्याओं और घर के पीछे से बरामद हुए कंकालों की खबर ने समाज को अंदर तक हिला दिया था। इस भयावह अपराध में आरोपी बनाए गए सुरेंद्र कोली और उसके मालिक मनिंदर सिंह पंढेर लंबे समय तक न्यायिक प्रक्रिया से गुजरते रहे। अब लगभग दो दशक बाद, इस कुख्यात मामले का अध्याय बंद होता नजर आ रहा है।
नवीनतम जानकारी के अनुसार, सुरेंद्र कोली को अदालत ने 13 मामलों में बरी कर दिया है, जिसके बाद उसे जेल से रिहा कर दिया गया है। अदालत का यह निर्णय सबूतों की कमी और अभियोजन पक्ष की कमजोर दलीलों के आधार पर लिया गया।
निठारी कांड: देश को दहला देने वाली वारदात
2005 से 2006 के बीच नोएडा के सेक्टर-31 स्थित निठारी गांव में कई बच्चे अचानक लापता होने लगे। इन गुमशुदगियों की शिकायतें जब बढ़ीं, तो पुलिस ने पंढेर के घर की जांच की और उसके पीछे से कई मानव कंकाल और अंग-भंग शव बरामद किए। जांच के बाद पता चला कि बच्चों की हत्या कर उनके अंगों को नष्ट किया गया था।
मामले की भयावहता को देखते हुए इसे सीबीआई को सौंपा गया, जिसने लंबी जांच के बाद पंढेर और उसके घरेलू सहायक सुरेंद्र कोली के खिलाफ कई चार्जशीट दाखिल कीं। देशभर में इस केस ने मानवता को झकझोर देने वाले अपराध के रूप में सुर्खियां बटोरीं।
कानूनी लड़ाई और विवाद
सुरेंद्र कोली को कई मामलों में मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी, जबकि कुछ में आजीवन कारावास का आदेश दिया गया। लेकिन समय के साथ कई निर्णयों के खिलाफ अपीलें दाखिल की गईं। उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार इन फैसलों की समीक्षा की।
कानूनी प्रक्रिया वर्षों तक चली। हर सुनवाई में नए साक्ष्य और पुराने बयान जांचे गए। अंततः अदालत ने पाया कि कई मामलों में अभियोजन पक्ष को पर्याप्त प्रत्यक्ष या वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं मिल सके। यही वजह रही कि अदालत ने 13 मामलों में कोली को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।
जेल से बाहर निकला कोली
लगभग 18 साल जेल में बिताने के बाद, सुरेंद्र कोली को आखिरकार रिहाई का आदेश मिल गया। जेल प्रशासन ने कानूनी औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद उसे रिहा किया। उसकी रिहाई के बाद फिर से इस केस की चर्चा शुरू हो गई है।
हालांकि पीड़ित परिवारों ने अदालत के फैसले पर निराशा जताई है। उनका कहना है कि न्याय अब भी अधूरा है और बच्चों की आत्माओं को तब तक शांति नहीं मिलेगी जब तक असली दोषी सजा नहीं पाते। वहीं, कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अदालत ने अपने फैसले में कानून और सबूतों के आधार पर निर्णय दिया है।

