पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI की एक रहस्यमयी शाखा जिसे S1 कहा जाता है, पर आरोप है कि यह भारत में होने वाले कई आतंकवादी हमलों से जुड़ी रही है। S1 का मुख्यालय इस्लामाबाद में स्थित बताया जाता है और इसे वर्षों से आतंकवादी समूहों को प्रशिक्षण देने, हथियार और संसाधन मुहैया कराने तथा हमलों की रणनीति तैयार करने में सक्रिय माना जाता है। कथित तौर पर इस इकाई का गठन और संचालन इतनी गुप्तता के साथ होता है कि इसकी मौजूदगी और गतिविधियाँ सार्वजनिक तौर पर लंबे समय तक छिपी रहीं।
S1 पर आरोप हैं कि यह केवल प्रशिक्षण नहीं देती, बल्कि ड्रग्स से होने वाले काले धन के जरिये आतंकवादी गतिविधियों को वित्तीय मदद भी पहुँचाती है। इस तरह के स्रोतों से जुटाए गए पैसे का इस्तेमाल हथियार खरीदने, फंड ट्रांसफर करने और आश्रयस्थल तैयार करने के लिए किया जाता है। यह मॉडल आतंकवाद को लंबे समय तक चलाने के लिहाज से रणनीतिक और नाजुक माना जाता है क्योंकि इसे सीधे तौर पर राज्य से अलग दिखाया जा सकता है।
किन घटनाओं से जुड़ी बताई जाती है यह यूनिट?
S1 को 1993 के मुंबई धमाकों से लेकर बाद के कई हमलों से जोड़कर देखा जाता है। इन आरोपों के अनुसार, 25 साल से भी अधिक समय से यह यूनिट सक्रिय है और विभिन्न आतंकी संगठनों को भारत के खिलाफ ऑपरेशन्स के लिए प्रशिक्षित करती रही है। इस अवधि में S1 ने कथित तौर पर स्थानीय और पार-सीमाई आतंकवादी नेटवर्कों को तैयार किया, उनकी चुनौतियों का विश्लेषण किया और हमला करने की रणनीतियाँ विकसित कीं — और यह सब इतनी सूक्ष्मता से किया गया कि सीधे जुड़ाव बाहर दिखना मुश्किल रहा।
S1 की पहचान और उसकी कार्यप्रणाली गुप्त रखने का तरीका ही उसकी सबसे बड़ी ताकत बना। प्रशिक्षुओं की भर्ती, प्रशिक्षण शिविरों का संचालन और संसाधन मुहैया कराना—इन सभी गतिविधियों को छिपाने के लिए जटिल कवर ऑपरेशन्स और तीसरे पक्ष के नेटवर्कों का इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह की गुप्तचर गतिविधियाँ किसी भी समानांतर खुफिया संरचना के लिए परंपरागत रूप से खतरनाक होती हैं क्योंकि वे आधिकारिक कब्जे और नियंत्रण से परे रहती हैं।
क्यों अहम है यह जानकारी?
यदि S1 जैसी इकाइयाँ वास्तव में सक्रिय हैं और सीमा पार आतंकवाद को प्रोत्साहित कर रही हैं, तो यह क्षेत्रीय सुरक्षा और दोनों देशों के बीच विश्वास के सिद्धांतों पर गहरा असर डालती है। आतंकवाद को वित्त, प्रशिक्षण और रणनीति देने वाली गुप्त इकाइयाँ संघर्ष को लंबे समय तक टिकाऊ बना सकती हैं और तबाही के पैमाने को बढ़ा सकती हैं। साथ ही, ऐसे आरोपों की पुष्टि या खंडन के बिना समझौते, कूटनीति और सुरक्षा नीतियाँ बनाना मुश्किल हो जाता है।

