PM Modi UK visit:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार देर रात एक बजे ब्रिटेन की दो दिवसीय यात्रा पर रवाना होंगे। इस यात्रा का प्रमुख उद्देश्य भारत और ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को अंतिम रूप देना है। विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने जानकारी दी कि दोनों देशों के अधिकारी एफटीए के मसौदे को तैयार करने में जुटे हैं ताकि गुरुवार को प्रधानमंत्री मोदी और ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीयर स्टार्मर के बीच होने वाली द्विपक्षीय बैठक में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए जा सकें।
शुल्कीय मुद्दों पर सहमति की कोशिश
दोनों पक्ष शुल्क से संबंधित तकनीकी मुद्दों पर गंभीरता से चर्चा कर रहे हैं। उद्देश्य है कि बुधवार तक इन विवादित मुद्दों पर अंतिम सहमति बना ली जाए। अगर यह संभव हो गया, तो भारत और ब्रिटेन के बीच का यह एफटीए व्यापारिक संबंधों को नई दिशा और गहराई देगा।
मई में बनी थी सहमति, अब दस्तावेज पर हस्ताक्षर की तैयारी
गौरतलब है कि 6 मई 2025 को ही दोनों देशों ने एफटीए पर जल्द हस्ताक्षर की घोषणा कर दी थी। उसी के तहत दोनों देशों के अधिकारी कई दौर की बातचीत के बाद अब अंतिम समझौते की ओर बढ़ रहे हैं। कानूनी और तकनीकी पहलुओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है और अधिकांश मुद्दों पर पहले ही सहमति बन चुकी है।
रूस से तेल खरीद पर भारत का दो टूक जवाब
इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी रूस से तेल और गैस की खरीद को लेकर भी ब्रिटिश नेतृत्व के समक्ष भारत का रुख स्पष्ट करेंगे। भारत पहले ही यह कह चुका है कि वह ब्रिटेन और यूरोपीय संघ द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को स्वीकार नहीं करेगा। भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा और उसकी कीमत देश की प्राथमिकता है, और इस विषय में किसी प्रकार का दोहरा मापदंड स्वीकार्य नहीं है।
रूसी रिफाइनरी पर प्रतिबंध से भारत की चिंता
हाल ही में यूरोपीय संघ और ब्रिटेन ने रूस से ऊर्जा आपूर्ति पर नए प्रतिबंध लगाए हैं। इनमें रूस को तेल व गैस किस कीमत पर बेचनी है, इसकी सीमा तय की गई है। इससे ज्यादा कीमत देने वाले देशों पर भी प्रतिबंध की चेतावनी दी गई है। भारत में स्थित रूसी कंपनी रोसनेफ्त की एक रिफाइनरी भी इन प्रतिबंधों के दायरे में आ गई है, जिससे भारत को चिंता है।
भारत का संतुलित और राष्ट्रीय हितों पर केंद्रित दृष्टिकोण
विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने कहा कि भारत इस मुद्दे पर बेहद संतुलित और व्यावहारिक रुख अपनाएगा। उन्होंने कहा कि जहां यूरोप अपनी सुरक्षा चिंताओं से जूझ रहा है, वहीं भारत जैसे देशों की भी अपनी ऊर्जा और आर्थिक चुनौतियाँ हैं। इसलिए किसी भी वैश्विक निर्णय से पहले सभी देशों के हितों का ध्यान रखना आवश्यक है।