RBI Repo Rate:भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने हाल ही में अपनी मौद्रिक नीति बैठक में रेपो रेट को 5.5 प्रतिशत पर स्थिर रखने का निर्णय लिया है। इस फैसले का सीधा असर उन लाखों लोगों पर पड़ा है, जिन्होंने बैंक या अन्य वित्तीय संस्थानों से लोन लिया हुआ है। क्योंकि रेपो रेट स्थिर रखने का मतलब है कि बैंक अपने ग्राहकों को ब्याज दरों में कोई कमी नहीं देंगे, जिससे लोन की ईएमआई (EMI) में भी कोई कमी नहीं आएगी।
रेपो रेट क्या होता है और इसका लोन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
रेपो रेट वह दर होती है जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को पैसा उधार देता है। जब RBI अपनी मौद्रिक नीति के तहत इस दर को घटाता है, तो बैंकों के लिए पैसे उधार लेना सस्ता हो जाता है, जिससे वे अपने ग्राहकों को भी कम ब्याज दरों पर लोन देने लगते हैं। इससे लोनधारकों की मासिक किश्त यानी ईएमआई कम हो जाती है।लेकिन अगर RBI रेपो रेट को स्थिर रखता है या बढ़ाता है, तो बैंकों को पैसा महंगा पड़ेगा और वे ब्याज दरों को उसी स्तर पर बनाए रखेंगे या बढ़ाएंगे। इस कारण लोनधारकों को अपनी ईएमआई में कोई कमी नहीं मिलती।
आरबीआई ने रेपो रेट क्यों नहीं घटाया?
RBI का यह कदम मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। भारत में मुद्रास्फीति (इन्फ्लेशन) को नियंत्रण में रखना RBI की प्राथमिक जिम्मेदारी होती है। यदि महंगाई दर बढ़ रही हो तो RBI रेपो रेट को कम करने से बचता है ताकि अर्थव्यवस्था में ज्यादा पैसा न पहुंचे और महंगाई को बढ़ने से रोका जा सके।इस समय भी भारत में मुद्रास्फीति की दर और आर्थिक संकेत स्थिर या उच्च स्तर पर बने हुए हैं, इसलिए RBI ने रेपो रेट को 5.5 फीसदी पर ही स्थिर रखने का फैसला किया है ताकि आर्थिक स्थिरता बनी रहे।
लोनधारकों के लिए क्या हैं विकल्प?
रेपो रेट स्थिर रहने के बावजूद लोनधारक कुछ विकल्प अपना सकते हैं। वे अपने बैंक से संपर्क कर लोन रिफाइनेंसिंग या ब्याज दर में छूट के लिए आवेदन कर सकते हैं। कई बार बैंक अपने ग्राहकों को विशेष ऑफर्स या छूट देते हैं, खासकर जब आर्थिक माहौल चुनौतीपूर्ण हो।
इसके अलावा, लोनधारकों को सलाह दी जाती है कि वे अपने बजट और वित्तीय योजना को मजबूती से तैयार करें ताकि समय पर ईएमआई भुगतान में कोई समस्या न हो।