Independence Day: इस स्वतंत्रता दिवस पर, भारत ने आजादी के 77 साल पूरे किए हैं। इस विशेष अवसर पर, स्वतंत्रता संग्राम के कई महान सेनानियों की याद की जाती है, जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपार बलिदान दिए। तिलक से लेकर नेहरू, लक्ष्मीबाई से लेकर भगत सिंह तक, सभी ने आजादी के आंदोलन को बल प्रदान किया। महात्मा गांधी के आंदोलनों को विशेष रूप से याद किया जाता है, जिन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह के माध्यम से ब्रिटिश हुकूमत को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। गांधी के इन पांच आंदोलनों की भूमिका पर एक नजर डालते हैं जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
चंपारण सत्याग्रह: भारत का पहला नागरिक अवज्ञा आंदोलन
महात्मा गांधी ने 1917 में चंपारण जिले में सत्याग्रह का आगाज किया। यह भारत का पहला नागरिक अवज्ञा आंदोलन था, जिसमें गांधी ने सत्याग्रह के सिद्धांतों का उपयोग कर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध किया। इस आंदोलन का उद्देश्य स्थानीय किसानों को नीली जड़ी बूटियों की खेती के लिए मजबूर करने वाले ब्रिटिश प्रशासन के खिलाफ था। इस आंदोलन ने भारतीय जनमानस में सत्याग्रह के प्रति विश्वास को मजबूत किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक नई चेतना का संचार किया।
असहयोग आंदोलन: अंग्रेजी राज की नींव हिलाने वाला आंदोलन
अप्रैल 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद, देश भर में अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा और असंतोष बढ़ गया। महात्मा गांधी ने 1 अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन की घोषणा की। इस आंदोलन के दौरान, छात्रों ने स्कूल-कॉलेज जाना बंद कर दिया, मजदूर हड़ताल पर चले गए और वकील अदालतों में काम करने से मना करने लगे। असहयोग आंदोलन ने ब्रिटिश शासन की नींव को हिला दिया। हालांकि, 1922 में गोरखपुर के चौरी-चौरा में हुई हिंसा के कारण गांधी जी ने आंदोलन वापस ले लिया, लेकिन इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई दिशा दी और जनता की जागरूकता को बढ़ाया।
दांडी मार्च: नमक पर ब्रिटिश एकाधिकार के खिलाफ संघर्ष
महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 को अहमदाबाद से दांडी गांव तक 24 दिन का पैदल मार्च किया, जिसे दांडी मार्च, नमक सत्याग्रह और दांडी सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। ब्रिटिश सरकार ने नमक पर कर लगाया था, जिसे गांधी जी ने चुनौती दी। इस ऐतिहासिक मार्च के दौरान, गांधी जी और उनके अनुयायियों ने नमक कानून को तोड़ा और ब्रिटिश शासन के एकाधिकार को चुनौती दी। इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को घबराहट में डाल दिया और 1931 में गांधी-इरविन समझौते के बाद नमक कानून वापस लिया गया।
छुआछूत विरोधी आंदोलन: सामाजिक समानता की ओर एक कदम
महात्मा गांधी ने 8 मई 1933 को छुआछूत के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। गांधी जी ने आत्म-शुद्धि के लिए 21 दिन का उपवास किया और एक साल लंबे अभियान की शुरुआत की। 1932 में गांधी जी ने अखिल भारतीय छुआछूत विरोधी लीग की स्थापना की और दलित समुदाय के लिए ‘हरिजन’ नाम दिया। इसके साथ ही ‘हरिजन’ नामक साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन भी शुरू किया। इस आंदोलन ने छुआछूत के खिलाफ जन जागरूकता पैदा की और समाज में समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया।
महात्मा गांधी के ये आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की महत्वपूर्ण कड़ियाँ हैं। इन आंदोलनों ने न केवल ब्रिटिश शासन को चुनौती दी, बल्कि भारतीय समाज में सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा भी निर्धारित की। स्वतंत्रता दिवस के इस अवसर पर, इन आंदोलनों की पुनरावृत्ति और गांधी जी की शिक्षाओं की याद दिलाना हमें स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को समझने में मदद करता है।