कर्नाटक की राजनीति एक बार फिर उथल-पुथल के दौर से गुजरती दिख रही है। कांग्रेस सरकार के भीतर नेतृत्व परिवर्तन को लेकर चल रही अटकलों ने उस समय नया मोड़ ले लिया, जब उपमुख्यमंत्री और कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने अपने पद से हटने के संकेत दिए। शिवकुमार ने साफ शब्दों में कहा कि वे इस पद पर स्थायी रूप से नहीं रह सकते। उनके इस बयान ने राज्य कांग्रेस में हलचल मचा दी और राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे नेतृत्व बदलाव की संभावित शुरुआत माना।
शिवकुमार का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब पार्टी के अंदर पहले से ही सत्ता-साझेदारी के समझौते को लेकर चर्चा जारी है। विदित हो कि वर्तमान मुख्यमंत्री सिद्दरमैया और डीके शिवकुमार के बीच लंबे समय से नेतृत्व को लेकर खींचतान की स्थिति बनी रही है। दोनों नेताओं के समर्थक भी समय-समय पर अपनी-अपनी दावेदारी को लेकर दबाव बनाते रहे हैं। हालांकि पार्टी हाईकमान हर बार स्थिति को संभाल लेता है, लेकिन अंदरूनी तनाव की स्थिति बनी रहती है।
नेतृत्व की दौड़: सिद्दरमैया बनाम डीके शिवकुमार
कांग्रेस की कर्नाटक इकाई में सबसे चर्चित मुद्दा मुख्यमंत्री पद का रहा है। 2023 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली बड़ी जीत के बाद मुख्यमंत्री चुनने में पार्टी को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। तब समझौते के तहत सिद्दरमैया को पहले चरण में मुख्यमंत्री बनाया गया था, जबकि डीके शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री पद और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का दायित्व सौंपा गया था।
इन दोनों नेताओं के बीच शक्ति-संतुलन बनाए रखने के लिए बनाए गए सत्ता-साझेदारी समझौते के अनुसार, यह माना जा रहा है कि जून 2025 में सिद्दरमैया पद छोड़ सकते हैं, और इसके बाद मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी डीके शिवकुमार को सौंपे जाने की संभावना है। हालांकि पार्टी ने इस समझौते को सार्वजनिक रूप से कभी स्वीकार नहीं किया, लेकिन राजनीतिक हलकों में यह मुद्दा लगातार चर्चा में रहा है।
शिवकुमार के बयान का राजनीतिक असर
जब शिवकुमार कहते हैं कि “कोई भी पद स्थायी नहीं होता और मैं हमेशा इस पद पर नहीं रह सकता,” तो उनके इन शब्दों से यह संकेत मिलता है कि वे संगठन में बदलाव के लिए तैयार हैं। उनके बयान से यह भी समझा जा सकता है कि वे पार्टी हाईकमान पर अप्रत्यक्ष रूप से दबाव बनाना चाहते हैं, ताकि आने वाले समय में उन्हें मुख्यमंत्री पद की ओर बढ़ने का अवसर मिल सके।
दूसरी ओर, उनके इस्तीफे के संकेत को पार्टी के भीतर ऊपरी स्तर के बदलाव की संभावित तैयारी के रूप में भी देखा जा रहा है। कई नेताओं का मानना है कि शिवकुमार की यह रणनीति पार्टी के भीतर अपनी स्थिति मजबूत करने और समर्थकों को संदेश देने का तरीका हो सकती है।
कांग्रेस हाईकमान की परीक्षा
कर्नाटक की राजनीति हमेशा से कांग्रेस के लिए अहम रही है, और राज्य में सत्ता बनाए रखना पार्टी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर भी महत्वपूर्ण है। ऐसे में शीर्ष नेतृत्व के लिए यह जरूरी है कि वह संगठन के भीतर संतुलन बनाए रखे और दोनों बड़े नेताओं के बीच चल रहे तनाव को समय रहते मैनेज करे।
सियासत के इन संकेतों के बीच सभी की निगाहें अब इस बात पर टिकी हैं कि क्या वास्तव में जून 2025 में सत्ता हस्तांतरण होगा या फिर कांग्रेस एक नए समझौते की राह अपनाएगी। इतना तय है कि डीके शिवकुमार के इस बयान ने कर्नाटक की राजनीति में हलचल तेज कर दी है और आने वाले महीनों में घटनाक्रम और दिलचस्प होने वाला है।

