Aah’ in Mumbai:मुंबई के अंधेरी (पश्चिम) स्थित वेदा चौबारा ऑडिटोरियम में 17 जुलाई को ‘आह’ नामक नाटक का भव्य और सफल मंचन हुआ। यह आयोजन अखिल भारतीय सांस्कृतिक संस्थान–लखनऊ द्वारा किया गया था, जिसमें सामाजिक संदेश सेवा संस्थान–लखनऊ का विशेष और सक्रिय सहयोग रहा। नाटक का मूल आधार भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण अध्याय 1917 के चंपारण सत्याग्रह पर आधारित है, जिसे महात्मा गांधी ने बिहार के किसानों के शोषण के खिलाफ शुरू किया था।
नाटक की कथा: चंपारण की पीड़ा और गांधी का नेतृत्व

‘आह’ नाटक चंपारण के किसानों की करुण कथा को मंच पर जीवंत करता है। उस समय के कई जमींदार किसानों से जबरदस्ती लगान वसूलते थे, जबकि कानूनी रूप से इसकी कोई ठोस आवश्यकता नहीं थी। पीड़ा और अन्याय से जूझते किसानों की इस लड़ाई को महात्मा गांधी ने नेतृत्व दिया और सत्य एवं अहिंसा के मार्ग पर चलकर एक जन आंदोलन खड़ा किया। नाटक में इन्हीं ऐतिहासिक घटनाओं को भावनात्मक और सशक्त रूप से प्रस्तुत किया गया।
भावप्रवण अभिनय और सजीव प्रस्तुति
इस नाटक में मुख्य किरदारों की भूमिकाओं को देविका, अक्षयरिका, ध्रुव, धैर्य, दीपक, साकेत और शिवम् ने निभाया। इन कलाकारों ने अपने प्रभावशाली और सजीव अभिनय से दर्शकों को भावविभोर कर दिया। उन्होंने चंपारण की मिट्टी, उसकी पीड़ा और उसके लोगों की पुकार को न केवल मंच पर उकेरा, बल्कि दर्शकों के दिलों तक पहुंचाया। हर दृश्य में संवाद और भावनाओं की सघनता ने दर्शकों को इतिहास की गलियों में ले जाकर सोचने पर मजबूर कर दिया।
दर्शकों की उत्साही भागीदारी
इस आयोजन में मुंबई के रंगमंच प्रेमियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, विद्यार्थियों और युवाओं की बड़ी संख्या में उपस्थिति रही। दर्शकों ने नाटक के हर दृश्य में तालियों के माध्यम से अपनी प्रतिक्रियाएं दीं। कार्यक्रम के अंत में अनेक दर्शकों ने इसे समाज के लिए प्रेरणादायक और “आज के दौर में भी प्रासंगिक” बताया।
सामाजिक संदेश सेवा संस्थान–लखनऊ की अहम भूमिका
इस नाटक के आयोजन में सामाजिक संदेश सेवा संस्थान–लखनऊ ने अहम भूमिका निभाई। प्रचार-प्रसार, मंच सज्जा, व्यवस्थाओं और दर्शकों तक पहुंच सुनिश्चित करने में संस्थान का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण और सराहनीय रहा। इस सहयोग ने आयोजन को सफल बनाने में एक मजबूत आधार प्रदान किया।
आज भी प्रासंगिक है सत्य और अहिंसा का मार्ग
‘आह’ नाटक न केवल अतीत की घटनाओं को दोहराता है, बल्कि यह वर्तमान समाज के लिए एक गहरा सामाजिक संदेश भी देता है — अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाना और सत्य के मार्ग पर चलना आज भी उतना ही जरूरी है जितना गांधी जी के समय था। इस आयोजन ने यह सिद्ध किया कि रंगमंच समाज को जागरूक करने का एक सशक्त माध्यम है, और ऐसे प्रयासों को निरंतर जारी रखने की आवश्यकता है।