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योगी सरकार ने बदला नियम, अब हर साल नहीं बल्कि 5 साल में होगा लाइसेंस रिन्यूअल

UP News: उत्तर प्रदेश सरकार ने निजी स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े चिकित्सकों के लिए एक अहम फैसला लिया है। यदि आप 50 बेड से कम क्षमता वाले निजी अस्पताल का संचालन करते हैं, तो अब हर साल लाइसेंस रिन्यू कराने की जरूरत नहीं होगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में राज्य सरकार ने अब इस नियम में बदलाव कर दिया है, जिससे निजी अस्पतालों के संचालन में पारदर्शिता और सहूलियत दोनों आएगी।

हर पांच साल में कराना होगा रजिस्ट्रेशन रिन्यू

अब तक 50 बेड से कम वाले निजी अस्पतालों को हर साल लाइसेंस नवीनीकरण कराना पड़ता था, जिससे चिकित्सकों को बार-बार विभागीय चक्कर लगाने पड़ते थे। लेकिन अब चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने आदेश जारी कर कहा है कि इन अस्पतालों को अब सिर्फ हर पांच साल में एक बार ही रजिस्ट्रेशन रिन्यू कराना होगा।इस निर्णय का लाभ हज़ारों छोटे अस्पतालों को मिलेगा जो सीमित संसाधनों में जनता को चिकित्सा सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। आदेश स्वास्थ्य विभाग के महानिदेशक डॉ. रतनपाल सिंह सुमन द्वारा जारी किया गया है।

एक अस्पताल में फुल टाइम देने वाले डॉक्टर को नहीं मिलेगा दूसरा लाइसेंस

इस नए आदेश के तहत यह भी तय किया गया है कि अगर कोई डॉक्टर किसी अस्पताल में पूरा समय देता है, तो वह किसी अन्य अस्पताल के लिए लाइसेंस नहीं ले सकेगा।नए नियमों के अनुसार, जब कोई चिकित्सक अपने अस्पताल के पंजीकरण या नवीनीकरण के लिए आवेदन करेगा, तो उसे यह जानकारी देनी होगी कि वह अस्पताल में प्रतिदिन कितना समय देगा। जो डॉक्टर ‘पूरा समय’ दर्शाएंगे, उन्हें अन्य किसी अस्पताल का पंजीकरण देने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

ऑनलाइन पोर्टल से ही होगा नवीनीकरण

राज्य सरकार ने नवीनीकरण प्रक्रिया को पूरी तरह डिजिटल और पारदर्शी बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है। अब यह पूरी प्रक्रिया जनहित गारंटी पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन की जाएगी, जिससे चिकित्सकों को विभागीय कार्यालयों के चक्कर लगाने की जरूरत नहीं होगी।विभाग इस बात की भी निगरानी करेगा कि एक चिकित्सक कितने अस्पतालों से जुड़ा हुआ है, और इस आधार पर उसकी पात्रता तय की जाएगी।

सरकार की नीतियों से बढ़ेगी चिकित्सा सेवाओं की गुणवत्ता

इस कदम से न सिर्फ डॉक्टरों को प्रशासनिक राहत मिलेगी, बल्कि चिकित्सा सेवाओं की गुणवत्ता और जवाबदेही भी बढ़ेगी। छोटे निजी अस्पतालों को नियमित रूप से लाइसेंस के लिए आवेदन नहीं करना पड़ेगा, जिससे वे बेहतर ढंग से स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगे।

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