Celebi Airport ServicesTerminal Management India Pvt. Ltd. की सुरक्षा मंजूरी (Security Clearance) को रद्द कर दिया है। इस फैसले के खिलाफ इन कंपनियों ने न्यायालय में याचिका दायर की है। मामले की सुनवाई दिल्ली उच्च न्यायालय में चल रही है, जहां सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा अहम बयान दिया।
याचिका का मूल कारण:
Celebi समूह की दोनों कंपनियों ने सरकार के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें उनकी सुरक्षा मंजूरी को रद्द किया गया है। सुरक्षा मंजूरी किसी भी एयरपोर्ट से जुड़ी कंपनी के लिए आवश्यक होती है क्योंकि यह कंपनी को संवेदनशील क्षेत्रों में काम करने की अनुमति देती है। यह मंजूरी रद्द होने का मतलब है कि कंपनी एयरपोर्ट टर्मिनल्स या कार्गो सेवाओं का संचालन नहीं कर सकती।
सरकारी पक्ष का तर्क:
सुनवाई के दौरान भारत सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। उन्होंने अदालत को स्पष्ट रूप से बताया कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में कोई समझौता नहीं किया जा सकता। उनका कहना था कि ऐसे मामलों में सिर्फ दो ही विकल्प होते हैं – या तो कार्रवाई की जाए या फिर नहीं। कोई ‘बीच का रास्ता’ नहीं होता।
तुषार मेहता ने यह भी संकेत दिया कि सरकार ने कोई भी निर्णय जल्दबाज़ी में नहीं लिया है, बल्कि यह फैसला राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए, पूरी गंभीरता से किया गया है। हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि किस विशेष कारण से सुरक्षा मंजूरी रद्द की गई।
न्यायालय की भूमिका और आगे की प्रक्रिया:
मामले की सुनवाई दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की एकल पीठ के समक्ष हो रही है। अदालत अब यह तय करेगी कि सरकार का फैसला उचित था या नहीं, और क्या याचिकाकर्ताओं को राहत दी जा सकती है।
सेलेबी की स्थिति:
सेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज और सेलेबी दिल्ली कार्गो टर्मिनल मैनेजमेंट भारत में कई एयरपोर्ट्स पर ग्राउंड हैंडलिंग और कार्गो सेवाएं प्रदान करती हैं। इनकी सेवाएं एयरलाइनों और हवाई अड्डों के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। सुरक्षा मंजूरी रद्द होने से कंपनी की व्यावसायिक गतिविधियों पर गंभीर असर पड़ा है।
सरकार का कर्तव्य है
यह मामला केवल एक कॉर्पोरेट विवाद नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि जब बात राष्ट्रीय सुरक्षा की हो, तो सरकार किसी भी तरह की ढील देने को तैयार नहीं होती। तुषार मेहता के अनुसार, सरकार का कर्तव्य है कि वह देश की सुरक्षा को प्राथमिकता दे, चाहे इसके लिए कितनी ही बड़ी कंपनी को भी कार्रवाई का सामना क्यों न करना पड़े। अब यह देखना होगा कि अदालत इस संवेदनशील मुद्दे पर क्या फैसला सुनाती है।